यह अतीत से कैसा बंधन
म्रदुल बहुत थी मेरी इच्छा
देख तुम्हारी हाय अनिच्छा
तोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन
यह अतीत से कैसा बंधन
मौंन ह्रदय से तुम्हे बुलाया
अपनी ही प्रतिध्वनि को पाया
मेरे भाग्य-पटल पर अंकित,उस क्षण के तेरे उर क्रंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
चिर-अभाव में आज समाया
कैसी परवशता की छाया
यादों की इस मेह-लहर का,क्यूँ करता हूँ मै अभिनंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
vikram
3 टिप्पणियां:
Waah.! Hamesha ki tarah lajwaab.
तोड़ दिये मैंने ही उस क्षण,
यह अतीत से कैसा बंधन।
नये वर्ष के नये दिवस पर,
विक्रम जी का है अभिनन्दन।
म्रदुल बहुत थी मेरी इच्छा
देख तुम्हारी हाय अनिच्छा
तोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन....bahut sundar bhav aur abhivyakti vikram ji..aapko naye sal ki hardik badhai..evem kabhi mere yahan bhi aayen aapka hardik swagat hai...
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