आ फिर राग बसंती ..........
आ फिर राग बसंती छेड़े
है विहान भी रंग ,रंगीला
मलय पवन का राग नशीला
शरमाई सी मुझको तकती,तेरे नयनों को अब छेड़े
आ फिर राग बसंती छेड़े
कितने मधु-रितु ,साथ पुराना
सुखद बहुत ये ,साथ निभाना
तेरे मदमाते अधरों के,जाम अभी भी मुझको छेड़े
आ फिर राग बसंती छेड़े
ईश विनय, मन करे हठीला
बना रहे यह साथ,सजीला
तेरे मेरे मन उपवन में,तान बसंती कोयल छेड़े
आ फिर राग बसंती छेड़े
विक्रम
6 टिप्पणियां:
bahut sundar shrangaar ras me doobi kavita.bahut madhur.
है विहान भी रंग ,रंगीला
मलय पवन का राग नशीला
शरमाई सी मुझको तकती,तेरे नयनों को अब छेड़े
सुन्दर अभिलाषा।
सुन्दर!
बहुत सुंदर भावमयी रचना...
वाह बहुत बेहतरीन और उम्दा रचना
आभार !!
मेरी नई रचना
एक ख़्वाब जो पलकों पर ठहर जाता है
'आ फिर राग बसंती छेड़ें....' तन मन को आह्लादित करती रचना है .
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