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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

.इतने दिनों बाद........


इतने दिनों बाद.......

इतने दिनों बाद
अपनी खीची,अर्थहीन रेखा के पास
खड़ा हूँ
तुम्हारे सामाने

यादों के धुंध में
लहरा गयी है
बीते पलों की वह छाया
जब तुमने
रोका था मुझे
गुरु, सखा की भाँति
पर मै,महदाकांक्षा के वशीभूत
चला गया
कर अवहेलना
तुम्हारे आदेश की,याचना की
सर्व सिद्ध,गुणी की भाँति


याद है
अर्थहीन आकारों को
सार्थक करने के प्रयास में
रौद डाला
अपनी ही काया कों
वासना
ईर्ष्या
द्वेष के, पैरों तले
कर अपनी ही, करुणा से द्वन्द
जा लिपटा
इच्छाओं के सर्प-फण से


आज
जीवन समर में
हिम-तुषारों,
पतझड़
तपिस
वर्षा से पराजित
अपनी ही प्रतिध्वनि से डरा
स्तब्ध
शब्दहीन
इस याचना के साथ
दंणवत हूँ
पा सकूं
फिर से
,प्रेम
श्रद्धा
करुणा की नदी को
जो खो गयी है
मेरी इच्छाओं के रेत में

 vikram

3 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बीते पलों की यादों की सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन "काव्यान्जलि"--नई पोस्ट--"बेटी और पेड़"--में click करे

मनोज कुमार ने कहा…

ये जिनकी तस्वीर है, उनका परिचय दे देते तो कविता अधिक खुलती (हम जैसे पाठकों के समक्ष)।

फिर भी ...भावाभिव्यक्ति बहुत अच्छी लगी।

vikram7 ने कहा…

मनोज जी मेरे ब्लॉग में पधारने व टिप्पणी के लिये धन्यवाद, जिस चित्र के सम्बन्ध में पूछा है, वह मेरा ही है. ब्लॉग के प्रोफाइल में जो चित्र है वह ब्लॉग लेखन के प्रारम्भ के समय का है, जिन्दगी के बीते लम्हों को याद करते हुये यह कविता बन गई ,तो चित्र भी अपना डाल दिया .