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रविवार, 25 दिसंबर 2011

स्वप्न से अनुराग कैसा........

स्वप्न से अनुराग कैसा .......

स्वप्न से अनुराग कैसा
कल्पनाओं का सफर है
भावनाओ का समर है
है क्षणिक उन्माद नयनों का,नही ये सत्य जैसा
स्वप्न से अनुराग कैसा
विषमताओं से भरा है
ह्रदय को इसने छला है
नीद के हाथो विनिर्मित ,गीत का यह भाव कैसा
स्वप्न से अनुराग कैसा
भाग्य कब इससे बना है
कर्म न इससे जनां है
है क्षणिक सी जिन्दगी में,स्वप्न तो मृदुहास जैसा
स्वप्न से अनुराग कैसा
vikram

8 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut hi khoobsurat kavita swapn se anuraag kaisa.sach me sapne sapne hi hote hain hakikat se door.

अनुपमा पाठक ने कहा…

स्वप्न मृदुहास जैसा ही है... वह मृदुहास, जो अगर न हो तो तो जीवन के कई उद्देश्य फलीभूत ही न हों...

"वाण ही होते विचारों के नहीं केवल... स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है" दिनकर जी की इन पंक्तियों को याद करते हुए स्वप्न को प्रणाम!

कुमार संतोष ने कहा…

Bahut sunder rachna behad khoobsurat bhaaw !

Aabhaar !!

vikram7 ने कहा…

टिप्पणी के लिये धन्यवाद अनुपमा जी , विचारों के वाण,व स्वप्न के हाथो की तलवार समय व कर्म की गति से चले तो फलीभूत,कहीं मन की गति व मनमाने तरीके से चले तो ..........?

मनोज कुमार ने कहा…

स्वप्न तो मृदु हास जैसा
वाह! अद्बुत अभिव्यक्ति!!

अनुपमा पाठक ने कहा…

well said, vikram ji!
आपकी कविता बेहद सुन्दर है... भाव समझने में हमसे भूल हुई हो तो क्षमा करेंगे!

vikram7 ने कहा…

अनुपमा जी ,आपकी टिप्पणी सार्थक व सही है,''स्वप्न , जो अगर न हो तो तो जीवन के कई उद्देश्य फलीभूत ही न हों.''ऐसा सच है जिसे नकारा नही जा सकता. मेरी कविता तो मन में उपजे क्षणिक भावों का परिणाम है,जीवन का सच नहीं. आपकी टिप्पणी के सच को स्वीकारते हुये,हास्य बस उसकी व्याख्या कर दी,जिसके लिये क्षमा चाहता हूँ . कृपया अन्यथा न लें .भविष्य में भी आपकी राय का मुझे इंतज़ार रहेगा.

avanti singh ने कहा…

है क्षणिक उन्माद नयनों का,नही ये सत्य जैसा
स्वप्न से अनुराग कैसा......man ke bhav khubsurat shbdon me dhaal pane ki bdhai....