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शनिवार, 10 दिसंबर 2011

है कौन कर रहा प्रलय गान...

है कौन कर रहा प्रलय गान....

है कौन कर रहा प्रलय गान
भय-ग्रसित हो गए तरु के गात
हो शिथिल झर रहे उसके पात
सकुचे सहमें तरु के पंछी,गिर गिर कर तजनें लगे प्राण
है कौन कर रहा प्रलय गान
अविचल सुमेरु भी विकल हुये
झरनों के स्वर भी मंद हुये
स्तब्ध हुआ चंचल समीर,खो बैठा अपना दिशा ज्ञान
है कौन कर रहा प्रलय गान
यह काल-प्रबल का अमिट लेख
जीवन ललाट पर लिखा देख
रोकेगा इसको कौन यहाँ,हर क्षय में यह अस्तित्ववान
है कौन कर रहा प्रलय गान
vikram

2 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

भावपूर्ण बहुत सुंदर रचना,....

मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

जहर इन्हीं का बोया है, प्रेम-भाव परिपाटी में
घोल दिया बारूद इन्होने, हँसते गाते माटी में,
मस्ती में बौराये नेता, चमचे लगे दलाली में
रख छूरी जनता के,अफसर मस्त है लाली में,

पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

Rajesh Kumari ने कहा…

behtreen rachna.