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रविवार, 30 सितंबर 2012

आँसू से उर ज्वाल बुझाते......





आँसू से उर ज्वाल बुझाते

देह धर्म का मर्म न समझा
भोग प्राप्ति  में ऎसा  उलझा

कर्म
भोग के बीच संतुलन,खोकर सुख की आश लगाते

आँसू से उर ज्वाल बुझाते

प्रणय उच्चतर मैने माना
अमर सुधा पीने की ठाना

भोग नही बस सृष्टि कर्म
है,आह समझ उस क्षण हम पाते

आँसू से उर ज्वाल बुझाते

घनीभूत विषयों का साया
भेद समझ न इसके पाया

शिथिल हुआ था ज्ञान,तिमिरयुत पथ
रह रह के मुझे रुलाते

आँसू से उर ज्वाल बुझाते

विक्रम

शनिवार, 29 सितंबर 2012








समय ठहर उस क्षण,है जाता    

ज्वार मदन का जब है आता

रश्मि-विभा में रण ठन जाता

तभी उभय नि:शेष समर्पण,ह्रदयों का उस पल हो जाता  

समय ठहर उस क्षण,है जाता  

श्वास सुरभि सी आती जाती
अधरों से मधु रस छलकाती

आलिंगन आबद्ध  युगल तब,प्रणय पाश में है बँध जाता    

समय ठहर उस  क्षण,है जाता          

कुसुम केंद्र भेदन क्षण आता
मृदुता को, कर्कशता  भाता

अग्नि शीत के बाहुवलय में,अर्पण अपनें को कर पाता      

समय ठहर उस  क्षण,है जाता         

विक्रम

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

क्या भूलूं क्या याद करूं मैं......



 क्या भूलूं क्या याद करूं मैं

अब कैसा परिताप करूं मैं

या कोरा संलाप करूं मै

नील गगन का वासी होकर, कहाँ समंदर आज रचूँ मैं

क्या भूलूं क्या याद करूं मैं

खुशियों की झोली में छुप मैं

पीडा की क्रीडा में रच मैं

कर अनंत की चाह, ह्रदय को पशुवत आज बना बैठा मैं

क्या भूलूं क्या याद करूं मैं

सच का सत्य समझ बैठा मै

अपने को ही खो बैठा मै

बिछुडन के पथ मे क्या ढूढूँ, सपनों की डोली में चढ़ मै

क्या भूलूं क्या याद करूं मैं

विक्रम

शनिवार, 7 जनवरी 2012

कारवाँ बन जायेगा......












कारवाँ बन जायेगा,चलते चले बस जाइये
मंजिले ख़ुद ही कहेगी,स्वागतम् हैं आइये

पीर को भी प्यार से,वेइंतिहाँ सहलाइये
आशिकी में डूबते,उसको भी अपने पाइये

हैं नजारे ही नहीं,काफी समझ भी जाइये
देखने वाले के नजरों,में जुनूँ भी  चाहिये

बुत नहीं कोई फरिश्ते,वे वजह मत जाइये
रो रहे मासूम को,रुक कर ज़रा दुलराइये

टूटती उम्मीद पे,हसते हुए बस आइये
अपने पहलू में नई,खुसियां मचलते पाइये
विक्रम


बुधवार, 4 जनवरी 2012

जब हम कुछ दिन बाद मिले थे .........




जब हम कुछ दिन बाद मिले थे 

 
मेरी प्रतीक्षा में तुम रत थे
नयन तेरे कितने विह्वल थे


एक-दूजे को देख हमारे ,मन में कितने दीप जले थे

जब हम कुछ दिन बाद मिले थे  

 

मै आया जब पास तुम्हारे
कम्पित तन-मन हुये हमारे

 
अपलक तक नयनों से मुझको ,तुमने कितने प्रश्न किये थे


जब हम कुछ दिन बाद मिले थे 

 
क्षण भर का एकांत देख कर
वक्ष-स्थल से मेरे लग कर


तेरी उर धड़कन ने मुझस ,जीवन के प्रति-क्षण मागें थे

जब हम कुछ दिन बाद मिले थे

विक्रम


शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

यह अतीत से कैसा बंधन........














यह अतीत से कैसा बंधन

म्रदुल बहुत थी मेरी इच्छा
देख तुम्हारी हाय अनिच्छा


तोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन


यह अतीत से कैसा बंधन


मौंन ह्रदय से तुम्हे बुलाया
अपनी ही प्रतिध्वनि को पाया


मेरे भाग्य-पटल पर अंकित,उस क्षण के तेरे उर क्रंदन


यह अतीत से कैसा बंधन


चिर-अभाव में आज समाया
कैसी परवशता की छाया


यादों की इस मेह-लहर का,क्यूँ करता हूँ मै अभिनंदन


यह अतीत से कैसा बंधन


vikram