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रविवार, 25 दिसंबर 2011

मै चुप हूँ........

मै चुप हूँ......

मै चुप हूँ
ढूढता है तू
बन व्रतचारी
हिम शिखर में
स्वंम सिध्द मंत्रो की साधना से
मै चुप हूँ
श्रध्दा के ज्वार में
निर्माण करता है 

 मेरे रूपों का
स्थानों का
मै चुप हूँ
अणु-अणु में खोजता है
उत्पत्ति के रहस्य
मै चुप हूँ
खुद को मान बैठता है
सर्व शक्तिमान
मै चुप हूँ
गिडगिडाता है
प्राणों के एक बुलबुले के लिए
मै चुप हूँ
सम्पूर्ण गतियों,प्रवाहों को

समझने की
तेरी
लालसा 

 मै चुप हूँ
देख तुम्हारी
श्रध्दा
कृतज्ञता
परिताप
मै चुप हूँ
जानता हूँ
तुम एक अंग हो
मेरे चेतन अवस्था के
जो
चलेगा निरंतर
मेरी अवचेतना तक
नई चेतना के लिए
मै चुप हूँ
विक्रम

6 टिप्‍पणियां:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रविष्टि कल दिनांक 26-112-2011 के सोमवारीय चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर भी होगी। सूचनार्थ

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut umda bhaav addbhut prastuti.pahli baar aapke blog par aai hoon.aana sarthak ho gaya.

मनोज कुमार ने कहा…

मौन में जो शक्ति होती है वह वाचाल रहने में नहीं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मौन की शक्ति को कहती अच्छी रचना

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बहुत ही सार्थक रचना...
सादर...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर रचना,...अच्छी प्रस्तुती,
क्रिसमस की बहुत२ शुभकामनाए.....

मेरे पोस्ट के लिए--"काव्यान्जलि"--बेटी और पेड़-- मे click करे