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शनिवार, 29 सितंबर 2012








समय ठहर उस क्षण,है जाता    

ज्वार मदन का जब है आता

रश्मि-विभा में रण ठन जाता

तभी उभय नि:शेष समर्पण,ह्रदयों का उस पल हो जाता  

समय ठहर उस क्षण,है जाता  

श्वास सुरभि सी आती जाती
अधरों से मधु रस छलकाती

आलिंगन आबद्ध  युगल तब,प्रणय पाश में है बँध जाता    

समय ठहर उस  क्षण,है जाता          

कुसुम केंद्र भेदन क्षण आता
मृदुता को, कर्कशता  भाता

अग्नि शीत के बाहुवलय में,अर्पण अपनें को कर पाता      

समय ठहर उस  क्षण,है जाता         

विक्रम

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